ऐसे ही नहीं खूब लम्हे बिताए हमने एक साथ और अगर ऐसे ही होता तो हर रोज मन के भीतर यादों का तूफान नहीं होता...
कैसी होगी वो, क्या करती होगी, बहुत दर्द सहा है उसने अब ठीक तो होगी ना, उसके चेहरे की मुस्कुराहट जो मैंने छीनी थी अब वो वापस तो आई होगी ना ?? बस ऐसे कई सवालों के जवाब ढूंढता रहता हूं, और अब थक चुका हूं...!!!
राह चलते डर सा रहता है कि कहीं अगर मिल जाओ गलती से सामने खड़ी तो मैं अपने आप को रोक पाऊंगा, या बिखर जाऊंगा ताश के पत्तों की तरह...
बस अब रब से यही दुआ चाहेंगे तुम खुश रहो अपनी जिंदगी में, तुम्हारे हर मुकाम पूरे हों, हर तमन्ना पूरी हो और अब कभी तुम्हारे चेहरे पे मायूसी और आंखों में आंसू ना आए..."
लिखाण: भावेश कदम©
दिनांक: १७ ऑगस्ट २०२४